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शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

आल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन के 75 साला जलसे को कप्तान अब्बास अली का सन्देश

 प्यारे दोस्तो! 

 आल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन के इस 75 साला जलसे में शिरकत करने की दिली तमन्ना थी लेकिन सेहत ठीक न हो पाने कि वजह से  आपके बीच आने से कासिर हूँ। मेरा बचपन से ही क्रन्तिकारी विचारधारा के साथ सम्बन्ध रहा है । 1931 में जब मैं पांचवीं जमात का छात्र  था,  23 मार्च को अँगरेज़ हुकूमत ने शहीदे आज़म भगत सिंह को लाहौर में सजाए मौत दे दी। सरदार की फांसी के तीसरे दिन इसके विरोध में मेरे शहर खुर्जा में एक जुलूस निकाला गया जिसमें मैं भी शामिल हुआ। हम लोग बा-आवाजे बुलंद गा रहे थे...... 
         भगत सिंह तुम्हें फिर से आना पड़ेगा
         हुकूमत को जलवा दिखाना पड़ेगा 
         ऐ .दरिया -ए -गंगा तू खामोश हो जा 
         ऐ दरिया-ए-सतलज तू स्याहपोश हो जा 
         भगत सिंह तुम्हें फिर भी आना पड़ेगा
         हुकूमत को जलवा दिखाना पड़ेगा ..........

इस घटना के बाद मैं नौजवान भारत सभा के साथ जुड़ गया और 1936-37 में हाई स्कुल का इम्तिहान पास करने के बाद जब मैं अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिल हुआ तो वहां मेरा सम्पर्क उस वक़्त के मशहूर कम्युनिस्ट लीडर कुंवर मुहम्मद अशरफ़ से  हुआ जो उस वक़्त आल इंडिया कांग्रेस कमिटी के सेक्रेटरी होने के साथ साथ कांग्रेस सोश्स्लिस्ट पार्टी के नेशनल एक्जक्यूटिव के भी मेम्बर थे लेकिन डाक्टर अशरफ़, गाँधी जी की विचारधारा से सहमत नहीं थे और अक्सर कहते थे कि " मुल्क गाँधी के रास्ते से आज़ाद नहीं हो सकता " . उनका मानन था कि जब तक फ़ौज बगावत नहीं करेगी मुल्क आज़ाद नहीं हो सकता। डाक्टर अशरफ़ अलीगढ में 'स्टडी सर्कल' चलाते थे और आल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन के भी सरपरस्त थे। उन्हीं के कहने पर मैं स्टुडेंट फेडरेशन का मेंबर  बना। उसी समय हमारे जिला बुलंदशहर में सूबाई  असेम्बली का एक उपचुनाव हुआ। उस चुनाव के दौरान मैं डाक्टर अशरफ़ के साथ रहा और कई जगह चुनाव सभाओं को सम्बोधित किया। उसी मौके पर कांग्रेस के आल इंडिया सद्र जवाहर लाल नेहरु भी खुर्जा तशरीफ़ लाए और उन्हें पहली बार नज़दीक से देखने का मौक़ा मिला।

इसके एक साल पहले ही यानी 1936 मैं  लखनऊ  में 'स्टुडेंट फेडरेशन' कायम हुआ था और पंडित नेहरु ने इसका उदघाटन किया था जबकि  मुस्लिम लीग के नेता कायद- ए- आज़म मोहम्मद अली जिनाह ने स्टुडेंट फेडरेशन के  स्थापना सम्मलेन कि सदारत कि थी। उसी समय कुछ लोगों ने 'आल इंडिया मुस्लिम स्टुडेंट फेडरेशन' कायम करने की भी कोशिश की और किया भी लेकिन उन्हें ज़यादा कामयाबी  नहीं मिली और एस. एम जाफ़र, अंसार हर्वानी  और अली सरदार  जाफ़री जैसे नेताओं ने मुस्लिम स्टुडेंट फेडरेशन की जमकर मुखालेफ़त की लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सम्प्रदायिक आधार पर बनाया गया वह संगठन काफी सकिर्य रहा और 1940 से 1947 के बीच 'मुस्लिम स्टुडेंट फेडरेशन' ने पाकिस्तान  आन्दोलन और दो  कौमी नज़रिए की हिमायत में काफी अहम रोल अदा किया । 1940  में स्टुडेंट फेडरेशन में पहली बार विभाजन हुआ और और नागपुर में हुए राष्ट्रीय सम्मलेन के बाद गांधीवादी समाजवादियों ने 'आल इंडिया स्टुडेंट कांग्रेस'   के नाम से एक अलग संगठन बना लिया जो बाद में कई धड़ों में विभाजित हुआ ।1964 में कम्युनिस्ट आन्दोलन में विभाजन के बाद स्टुडेंट फेडरेशन भी दो भागों में बंटा और एस ऍफ़ आई का गठन हुआ। 

दर-असल, वामपंथी-समाजवादी आन्दोलन की बदकिस्मती यह है कि इस में कई बार टूट और विभाजन हुआ है लेकिन वक़्त का तकाजा है कि देश में इस समय जो हालात हैं उन्हें देखते हुए सभी वामपंथी-समाजवादी शक्तियों को एक होना चाहिए ताकि नए इक्तासादी निजाम (न्यू इकोनोमिक आर्डर) की आड़ में मुनाफाखोरों और इजारेदारों का जो गिरोह इस मुल्क के अवाम और ख़ास कर गरीब लोगों पर मुसल्लत किया जा रहा है उससे निजात मिल सके।

बचपन से ही अपने इस अज़ीम मुल्क को आज़ाद और खुशहाल देखने की तमन्ना थी जिसमें ज़ात- बिरादरी, मज़हब और ज़बान या रंग के नाम पर किसी तरह का इस्तेह्साल न हो जहाँ हर हिन्दुस्तानी सर उंचा करके चल सके, जहाँ अमीर-गरीब के नाम पर कोई भेद- भाव न हो। हमारा पांच हज़ार साला इतिहास ज़ात और मज़हब के नाम पर शोषण का इतिहास रहा है। अपनी जिंदगी में अपनी आँखों के सामने अपने इस अज़ीम मुल्क को आज़ाद होते हुए देखने की ख्वाहिश  तो पूरी हो गई लेकिन अब भी समाज में गैरबराबरी, भ्रष्टाचार, ज़ुल्म, जियायद्ती और फिरकापरस्ती का जो नासूर फैला हुआ है उसे देख कर बेहद तकलीफ होती है।

दोस्तो उम्र के 92 साल के इस पड़ाव पर हम तो चिराग- ए -सहरी (सुबह का दिया) हैं, न जाने कब बुझ जाएँ लेकिन आप से और आने वाली नस्लों से यही गुज़ारिश और उम्मीद है कि सच्चाई और ईमानदारी का जो रास्ता हमने अपने बुजुर्गों से सीखा उसकी मशाल  अब तुम्हारे हाथों में है, इस मशाल  को कभी बुझने मत देना। 
इन्कलाब जिंदाबाद ।   
आपका
कप्तान अब्बास अली 

कप्तान अब्बास अली का संक्षिप्त जीवन परिचय

3 जनवरी 1920 को कलंदर गढ़ी, खुर्जा, जिला बुलंदशहर मैं जन्मे  कप्तान अब्बास अली की प्रारम्भिक शिक्षा खुर्जा और अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्द्यालय    मैं हुई.बच्पन से ही क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित रहे और पहले नौजवान भारत सभा और फिर STUDENT FEDRATION के सदस्य बने .
1939  मैं अमुवि से INTERMIDIATE  करने के बाद आप दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बिर्तानी सेना मैं भरती हो गए और 1943 मैं जापानियों द्वारा मलाया मैं युद्ध बंदी बनाये गए.इसी दौरान आप जनरल  मोहन सिंह द्वारा बनायी गयी आज़ाद हिंद फ़ौज मैं शामिल हो गए और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेत्रत्त्व मैं देश कि आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी.1945  मैं जापान की हार के बाद ब्रिटिश सेना द्वारा युद्ध बंदी बना लिए गए.1946 मैं मुल्तान के किले मैं रखा गया कोर्ट मार्शल किया गया और सजा-ए-मौत सुनायी गयी, लेकिन देश आज़ाद हो जाने की वजह  से रिहा कर दिये गए.
मुल्क आज़ाद हो जाने के बाद 1948 मैं डा. राममनोहर लोहिया के नेत्रत्व मैं सोशिअलिस्ट  पार्टी मैं शामिल हुए और 1966 मैं संयुक्त सोशिअलिस्ट  पार्टी तथा  1973 मैं  सोशिअलिस्ट  पार्टी, उत्तर प्रदेश के राज्य मंत्री निर्वाचित हुए .
1967 मैं उत्तर प्रदेश मैं पहले संयुक्त विधायक दल और फिर पहली ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन करने मैं अहम भूमिका निभायी.आपातकाल के दौरान 1975 -77  मैं 15 माह तक बुलंदशहर, बरेली और नैनी सेन्ट्रल जेल मैं DIR और MISA के तहत बंद रहे.1977 मैं जनता पार्टी का गठन होने के बाद उसके सर्वप्रथम राज्याध्यक्ष बनाये गए और 1978 मैं 6 वर्षों के लिए विधान परिषद् के लिए निर्वाचित हुए.
आज़ाद हिन्दुस्तान मैं 50 से अधिक बार विभीन्न जन-आन्दोलानोँ  मैं जेल यात्रा कर चुके हैं .हाल ही मैं आपकी आत्मकथा "न रहूँ किसी का दस्तनिगर" राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कि गयी है.92 वर्ष कि आयु मैं भी अलीगढ, बुलंदशहर और दिल्ली मैं होने वाले जन-आन्दोलानोँ मैं शिरकत करते हैं और अपनी पुरजोर आवाज़ से युवा पीड़ी को प्रेरणा देने का काम करते हैं. 

पता: बी-40 , जी ऍफ़, निजामुद्दीन ईस्ट, नयी दिल्ली 110013 .
फ़ोन: 011 -41825879 वा 09899108838

1 टिप्पणी:

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

स्वाधीनता दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।