फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

आल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन के 75 साला जलसे को कप्तान अब्बास अली का सन्देश

 प्यारे दोस्तो! 

 आल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन के इस 75 साला जलसे में शिरकत करने की दिली तमन्ना थी लेकिन सेहत ठीक न हो पाने कि वजह से  आपके बीच आने से कासिर हूँ। मेरा बचपन से ही क्रन्तिकारी विचारधारा के साथ सम्बन्ध रहा है । 1931 में जब मैं पांचवीं जमात का छात्र  था,  23 मार्च को अँगरेज़ हुकूमत ने शहीदे आज़म भगत सिंह को लाहौर में सजाए मौत दे दी। सरदार की फांसी के तीसरे दिन इसके विरोध में मेरे शहर खुर्जा में एक जुलूस निकाला गया जिसमें मैं भी शामिल हुआ। हम लोग बा-आवाजे बुलंद गा रहे थे...... 
         भगत सिंह तुम्हें फिर से आना पड़ेगा
         हुकूमत को जलवा दिखाना पड़ेगा 
         ऐ .दरिया -ए -गंगा तू खामोश हो जा 
         ऐ दरिया-ए-सतलज तू स्याहपोश हो जा 
         भगत सिंह तुम्हें फिर भी आना पड़ेगा
         हुकूमत को जलवा दिखाना पड़ेगा ..........

इस घटना के बाद मैं नौजवान भारत सभा के साथ जुड़ गया और 1936-37 में हाई स्कुल का इम्तिहान पास करने के बाद जब मैं अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिल हुआ तो वहां मेरा सम्पर्क उस वक़्त के मशहूर कम्युनिस्ट लीडर कुंवर मुहम्मद अशरफ़ से  हुआ जो उस वक़्त आल इंडिया कांग्रेस कमिटी के सेक्रेटरी होने के साथ साथ कांग्रेस सोश्स्लिस्ट पार्टी के नेशनल एक्जक्यूटिव के भी मेम्बर थे लेकिन डाक्टर अशरफ़, गाँधी जी की विचारधारा से सहमत नहीं थे और अक्सर कहते थे कि " मुल्क गाँधी के रास्ते से आज़ाद नहीं हो सकता " . उनका मानन था कि जब तक फ़ौज बगावत नहीं करेगी मुल्क आज़ाद नहीं हो सकता। डाक्टर अशरफ़ अलीगढ में 'स्टडी सर्कल' चलाते थे और आल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन के भी सरपरस्त थे। उन्हीं के कहने पर मैं स्टुडेंट फेडरेशन का मेंबर  बना। उसी समय हमारे जिला बुलंदशहर में सूबाई  असेम्बली का एक उपचुनाव हुआ। उस चुनाव के दौरान मैं डाक्टर अशरफ़ के साथ रहा और कई जगह चुनाव सभाओं को सम्बोधित किया। उसी मौके पर कांग्रेस के आल इंडिया सद्र जवाहर लाल नेहरु भी खुर्जा तशरीफ़ लाए और उन्हें पहली बार नज़दीक से देखने का मौक़ा मिला।

इसके एक साल पहले ही यानी 1936 मैं  लखनऊ  में 'स्टुडेंट फेडरेशन' कायम हुआ था और पंडित नेहरु ने इसका उदघाटन किया था जबकि  मुस्लिम लीग के नेता कायद- ए- आज़म मोहम्मद अली जिनाह ने स्टुडेंट फेडरेशन के  स्थापना सम्मलेन कि सदारत कि थी। उसी समय कुछ लोगों ने 'आल इंडिया मुस्लिम स्टुडेंट फेडरेशन' कायम करने की भी कोशिश की और किया भी लेकिन उन्हें ज़यादा कामयाबी  नहीं मिली और एस. एम जाफ़र, अंसार हर्वानी  और अली सरदार  जाफ़री जैसे नेताओं ने मुस्लिम स्टुडेंट फेडरेशन की जमकर मुखालेफ़त की लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सम्प्रदायिक आधार पर बनाया गया वह संगठन काफी सकिर्य रहा और 1940 से 1947 के बीच 'मुस्लिम स्टुडेंट फेडरेशन' ने पाकिस्तान  आन्दोलन और दो  कौमी नज़रिए की हिमायत में काफी अहम रोल अदा किया । 1940  में स्टुडेंट फेडरेशन में पहली बार विभाजन हुआ और और नागपुर में हुए राष्ट्रीय सम्मलेन के बाद गांधीवादी समाजवादियों ने 'आल इंडिया स्टुडेंट कांग्रेस'   के नाम से एक अलग संगठन बना लिया जो बाद में कई धड़ों में विभाजित हुआ ।1964 में कम्युनिस्ट आन्दोलन में विभाजन के बाद स्टुडेंट फेडरेशन भी दो भागों में बंटा और एस ऍफ़ आई का गठन हुआ। 

दर-असल, वामपंथी-समाजवादी आन्दोलन की बदकिस्मती यह है कि इस में कई बार टूट और विभाजन हुआ है लेकिन वक़्त का तकाजा है कि देश में इस समय जो हालात हैं उन्हें देखते हुए सभी वामपंथी-समाजवादी शक्तियों को एक होना चाहिए ताकि नए इक्तासादी निजाम (न्यू इकोनोमिक आर्डर) की आड़ में मुनाफाखोरों और इजारेदारों का जो गिरोह इस मुल्क के अवाम और ख़ास कर गरीब लोगों पर मुसल्लत किया जा रहा है उससे निजात मिल सके।

बचपन से ही अपने इस अज़ीम मुल्क को आज़ाद और खुशहाल देखने की तमन्ना थी जिसमें ज़ात- बिरादरी, मज़हब और ज़बान या रंग के नाम पर किसी तरह का इस्तेह्साल न हो जहाँ हर हिन्दुस्तानी सर उंचा करके चल सके, जहाँ अमीर-गरीब के नाम पर कोई भेद- भाव न हो। हमारा पांच हज़ार साला इतिहास ज़ात और मज़हब के नाम पर शोषण का इतिहास रहा है। अपनी जिंदगी में अपनी आँखों के सामने अपने इस अज़ीम मुल्क को आज़ाद होते हुए देखने की ख्वाहिश  तो पूरी हो गई लेकिन अब भी समाज में गैरबराबरी, भ्रष्टाचार, ज़ुल्म, जियायद्ती और फिरकापरस्ती का जो नासूर फैला हुआ है उसे देख कर बेहद तकलीफ होती है।

दोस्तो उम्र के 92 साल के इस पड़ाव पर हम तो चिराग- ए -सहरी (सुबह का दिया) हैं, न जाने कब बुझ जाएँ लेकिन आप से और आने वाली नस्लों से यही गुज़ारिश और उम्मीद है कि सच्चाई और ईमानदारी का जो रास्ता हमने अपने बुजुर्गों से सीखा उसकी मशाल  अब तुम्हारे हाथों में है, इस मशाल  को कभी बुझने मत देना। 
इन्कलाब जिंदाबाद ।   
आपका
कप्तान अब्बास अली 

कप्तान अब्बास अली का संक्षिप्त जीवन परिचय

3 जनवरी 1920 को कलंदर गढ़ी, खुर्जा, जिला बुलंदशहर मैं जन्मे  कप्तान अब्बास अली की प्रारम्भिक शिक्षा खुर्जा और अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्द्यालय    मैं हुई.बच्पन से ही क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित रहे और पहले नौजवान भारत सभा और फिर STUDENT FEDRATION के सदस्य बने .
1939  मैं अमुवि से INTERMIDIATE  करने के बाद आप दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बिर्तानी सेना मैं भरती हो गए और 1943 मैं जापानियों द्वारा मलाया मैं युद्ध बंदी बनाये गए.इसी दौरान आप जनरल  मोहन सिंह द्वारा बनायी गयी आज़ाद हिंद फ़ौज मैं शामिल हो गए और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेत्रत्त्व मैं देश कि आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी.1945  मैं जापान की हार के बाद ब्रिटिश सेना द्वारा युद्ध बंदी बना लिए गए.1946 मैं मुल्तान के किले मैं रखा गया कोर्ट मार्शल किया गया और सजा-ए-मौत सुनायी गयी, लेकिन देश आज़ाद हो जाने की वजह  से रिहा कर दिये गए.
मुल्क आज़ाद हो जाने के बाद 1948 मैं डा. राममनोहर लोहिया के नेत्रत्व मैं सोशिअलिस्ट  पार्टी मैं शामिल हुए और 1966 मैं संयुक्त सोशिअलिस्ट  पार्टी तथा  1973 मैं  सोशिअलिस्ट  पार्टी, उत्तर प्रदेश के राज्य मंत्री निर्वाचित हुए .
1967 मैं उत्तर प्रदेश मैं पहले संयुक्त विधायक दल और फिर पहली ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन करने मैं अहम भूमिका निभायी.आपातकाल के दौरान 1975 -77  मैं 15 माह तक बुलंदशहर, बरेली और नैनी सेन्ट्रल जेल मैं DIR और MISA के तहत बंद रहे.1977 मैं जनता पार्टी का गठन होने के बाद उसके सर्वप्रथम राज्याध्यक्ष बनाये गए और 1978 मैं 6 वर्षों के लिए विधान परिषद् के लिए निर्वाचित हुए.
आज़ाद हिन्दुस्तान मैं 50 से अधिक बार विभीन्न जन-आन्दोलानोँ  मैं जेल यात्रा कर चुके हैं .हाल ही मैं आपकी आत्मकथा "न रहूँ किसी का दस्तनिगर" राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कि गयी है.92 वर्ष कि आयु मैं भी अलीगढ, बुलंदशहर और दिल्ली मैं होने वाले जन-आन्दोलानोँ मैं शिरकत करते हैं और अपनी पुरजोर आवाज़ से युवा पीड़ी को प्रेरणा देने का काम करते हैं. 

पता: बी-40 , जी ऍफ़, निजामुद्दीन ईस्ट, नयी दिल्ली 110013 .
फ़ोन: 011 -41825879 वा 09899108838

आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन का प्लेटिनम जुबली समारोह शुरू

लखनऊ 12 अगस्त। भारत के प्रथम अखिल भारतीय संगठन - आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ पर प्लेटिनम जुबली समारोह आज यहां ऐतिहासिक गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में शुरू हो गया। देश के कोने-कोने से आये एआईएसएफ के प्रतिनिधियों तथा देश के तमाम हिस्सों से आये एआईएसएफ के पुराने कार्यकर्ताओं से खचाखच भरे गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में प्लेटिनम जुबली समारोह का औपचारिक उद्घाटन करते हुए एआईएसएफ की उत्तर प्रदेश इकाई के पूर्व महासचिव रहे न्यायमूर्ति हैदर अब्बास रज़ा ने एआईएसएफ की गौरवशाली परम्पराओं, संघर्षों और उपलब्धियों को याद करते हुए छात्रों की वर्तमान पीढ़ी का आह्वान किया कि वे दोहरी शिक्षा नीति, शिक्षा के बाजारीकरण, गरीबों को शिक्षा के अधिकार से वंचित करने वाली शिक्षा नीतियों तथा काले साहबों को पैदा करनी वाली शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ एआईएसएफ के झण्डे़ के नीचे एकताबद्ध होकर सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षा सुधारों के लिए संघर्ष को तेज करें और आने वाले वक्त के लिए नागरिकों और राजनीतिज्ञों की ऐसी क्रान्तिकारी पीढ़ी तैयार करें जो देश को सही दिशा में ले जा सके। न्यायमूर्ति रज़ा ने 1953 के अपने छात्र जीवन को याद करते हुए कहा कि उस दौर में लखनऊ में एक महान छात्र आन्दोलन ने जन्म लिया था जिससे भयभीत तत्कालीन सरकार के निर्देशों पर स्थानीय पुलिस ने पुरानी नजीराबाद रोड़ पर डा. गयेन्द्र की हत्या कर दी थी।
न्यायमूर्ति रज़ा ने कहा कि इस समय हम एक अशान्त दौर से गुजर रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवाद अंतिम सांसें ले रहा है। वैश्विक स्तर पर पूंजीवाद दम तोड़ रहा है। इस वक्त एआईएसएफ की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है जिसे वर्तमान पीढ़ी को निभाना ही होगा। न्यायमूर्ति रज़ा ने भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे वर्तमान आन्दोलन के चेहरों एवं मंतव्यों पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए एआईएसएफ की वर्तमान पीढ़ी से भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान को नेतृत्व देने को कहा।
स्वागत समिति के अध्यक्ष एवं भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने अपने स्वागत भाषण में सभी आगन्तुकों का स्वागत करते हुए स्वतंत्रता संग्राम के दौर से लेकर आज तक उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक अवदानों एवं योगदानों का स्मरण करते हुए कहा कि वर्तमान दौर में हम हर क्षेत्र में भूमंडलीकरण और कारपोरेटाइजेशन द्वारा पैदा की गयी समस्याओं से जूझ रहे हैं। नई व्यवस्था ने प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक को अपनी चपेट में ले लिया है। आम आदमी अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए या तो कर्ज ले रहा है, या गहने-जेवर, बर्तन और सम्पत्ति बेच रहा है अन्यथा उसके बच्चे शिक्षा के अधिकार से ही वंचित हो जा रहे हैं। शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार ने शिक्षा के साथ-साथ देश के भविष्य पर भी खतरा पैदा कर दिया जिसके हम मूक दर्शक बने नहीं रह सकते। उन्होंने आह्वान किया कि छात्रों की वर्तमान पीढ़ी को डा. अम्बेडकर की सीख - ”शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो“ को अमल में लाते हुए शिक्षा को हासिल करने के संघर्ष को खड़ा करना होगा। (स्वागत भाषण की प्रतिलिपि संलग्न है)।
समारोह को सम्बोधित करते हुए एआईएसएफ के पूर्व महासचिव तथा वर्तमान में भाकपा के उप महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने एआईएसएफ के गौरवशाली अवदानों तथा सत्तर के दशक के मध्य में एआईएसएफ के संविधान में किये गये संशोधनों का जिक्र करते हुए कहा कि एआईएसएफ लगातार वैज्ञानिक समाजवाद के लिए संघर्षरत रहा है परन्तु आज जब देश की नीतियां प्रतिगामी दिशा में चल रहीं हैं, छात्रों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने एआईएसएफ की वर्तमान पीढ़ी से फैसलाकुन संघर्षों को संगठित करने का आह्वान किया।
समारोह को सम्बोधित करते हुए एआईएसएफ की पूर्व महासचिव तथा वर्तमान में एटक की सचिव अमरजीत कौर ने देश के असंख्य मजदूरों की ओर से समारोह को बधाई देते हुए कहा कि 1936 में इसी ऐतिहासिक हाल में सम्पन्न होने वाले स्थापना सम्मेलन से कहीं बहुत पहले से छात्रों ने पहलकदमी लेना शुरू कर दिया था। उन्होंने उसके पहले के तमाम आजादी के संघर्षों के छात्रों में अवदान को याद करते हुए कहा कि देश में स्वाधीनता संग्राम का कोई युग रहा हो अथवा सुधारों का कोई आन्दोलन रहा हो, उसे गति तभी मिली जब छात्रों ने उसमें हस्तक्षेप किया। उन्होंने कहा कि सती प्रथा के खिलाफ आन्दोलन तभी शुरू हुआ जब एक छात्र ने चुनौती दी कि वह अपनी बहन को सती नहीं होने देगा, विधवा विवाह को तभी गति मिली जब एक छात्र ने एक विधवा से विवाह करने का साहस दिखाया। उन्होंने कहा कि लिंग समानता तथा महिला सशक्तीकरण के आन्दोलन को गति भी छात्रों ने ही उन्हें एआईएसएफ की महासचिव बनाकर दिया। उन्होंने एआईएसएफ की वर्तमान पीढ़ी का आवाह्न किया कि वे अपने घोषित नारों - ”शान्ति, प्रगति, वैज्ञानिक समाजवाद को बदले बिना परिवर्तित वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार अपने काम करने के तरीकों को बदलें, अधिक से अधिक छात्रों को एआईएसएफ की ओर आकर्षित करें और जुझारू संघर्षों के जरिए छात्र आन्दोलन को गति तथा देश की राजनीति को देशा दें।
समारोह को सम्बोधित करते हुए एआईएसएफ के पूर्व अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव अतुल कुमार अंजान ने देश के करोड़ों किसानों की ओर से समारोह का अभिनन्दन करते हुए अपने संस्मरणों के जरिये नई पीढ़ी को संघर्षों के लिए प्रेरित किया।
समारोह के औपचारिक उद्घाटन के पहले छेदी लाल धर्मशाला में एक चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन भाकपा के उप महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने किया तथा झंडोत्तोलन प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा एआईएसएफ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नरसिम्हा रेड्डी ने किया।
समारोह में ”लोक संघर्ष“ पत्रिका के एआईएसएफ पर केन्द्रित अंक का विमोचन भाकपा के उप महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने किया।
समारोह के दूसरे सत्र में एआईएसएफ की विभिन्न पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व करने वाले देश की विभिन्न हिस्सों से आये तमाम राजनीतिज्ञों, न्यायविदों, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, शिक्षकों, वकीलों, शिक्षाशास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों, कलाकारों, साहित्यकारों तथा मजदूर नेताओं आदि का अभिनन्दन किया गया।
सायंकाल सांस्कृतिक समारोह आयोजित होगा जिसकी शुरूआत लखनऊ इप्टा के कलाकार ”किस्सा एक लाश का“ नाटक प्रस्तुत कर करेंगे। तत्पश्चात् विभिन्न राज्यों से आये छात्र अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे।

आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन के प्लेटिनम जुबली (75वीं वर्षगांठ) समारोह (12-13 अगस्त 2011 - गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल, लखनऊ) में स्वागत समिति के अध्यक्ष डा. गिरीश का स्वागत भाषण

अध्यक्षमंडल के साथीगण, जिनके प्रेरणाप्रद उद्गारों से एआईएसएफ के प्लेटिनम जुबली समारोह का उद्घाटन होने जा रहा है और अपने विद्यार्थी जीवन में एआईएसएफ के जुझारू नेता रहे न्यायमूर्ति हैदर अब्बास रज़ा साहब, राष्ट्रीय स्तर पर और आंध्र प्रदेश में इस संगठन की विभिन्न जिम्मेदारियों का निर्वाह कर चुके और वर्तमान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उप महासचिव का. एस. सुधाकर रेड्डी, एआईएसएफ के पूर्व अध्यक्ष और भाकपा के सचिव मंडल के सदस्य का. अतुल कुमार अंजान, एआईएसएफ की पूर्व महासचिव और भाकपा के केन्द्रीय सचिव मंडल की सदस्या का. अमरजीत कौर, एआईएसएफ के अध्यक्ष परमजीत ढाबां एवं महासचिव अभय मनोहर टकसाल, समारोह में पधारे विशिष्ट अतिथिगण, सम्मानित पूर्व नेतागण, देश भर से आये छात्र प्रतिनिधिगण, स्वागत समिति के पदाधिकारी एवं सदस्यगण, समस्त सहयोगी साथी एवं वालंटियर साथियो!
एआईएसएफ की उत्तर प्रदेश इकाई एवं उसके सहयोगी संगठनों का परम सौभाग्य है कि उन्हें देश के सर्वप्रथम गठित छात्र संगठन के गौरवशाली 75 वर्षों की उपलब्धियों पर केन्द्रित इस जश्न की मेजबानी करने का सुअवसर मिला है। उत्तर प्रदेश और लखनऊ के सभी साथियों और नागरिकों का सिर इसलिये भी गर्व से उन्नत है कि आजादी के आन्दोलन में अतिविशिष्ट भूमिका निभाने वाले इस महान संगठन के स्थापना समारोह को आयोजित करने की पहल यहां के तत्कालीन छात्र नेताओं ने की। 12 एवं 13 अगस्त 1936 को इसी ऐतिहासिक श्री गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में बेहद गर्मजोशी के माहौल में एआईएसएफ की स्थापना हुई थी। इस घटना के महत्व को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि स्वतंत्रता संग्राम के तत्कालीन शीर्षस्थ नेता पं. जवाहर लाल नेहरू ने स्थापना सम्मेलन का उद्घाटन किया था और एक अन्य बड़े नेता मुहम्मद अली जिन्ना समारोह के मुख्य अतिथि थे। महात्मा गांधी एवं कविवर रवीन्द्र नाथ टैगोर ने सम्मेलन के महत्व को देखते हुये अपने शुभकामना सन्देश भेजे थे। स्वतंत्रता संग्राम में जुटे उस दौर के तमाम छात्र एवं युवा नेताओं ने सम्मेलन में शिरकत की थी। लखनऊ के एक जुझारू छात्र नेता श्री प्रेम नारायण भार्गव इसके प्रथम महासचिव चुने गये, यह भी उत्तर प्रदेश और लखनऊ के लिए बेहद गौरव की बात है।
मित्रो!
उत्तर प्रदेश की यह भूमि हर तरह से उर्वरा रही है। पर्वतराज हिमायल से निकली लगभग दो दर्जन नदियों द्वारा निर्मित यहां की शस्य-श्यामला भूमि भांति-भांति के फल, सब्जी, अनाज आदि के उत्पादन का स्रोत है। विदेशी आक्रान्ताओं खासकर ब्रिटिश उपनिवेशवादियों का यहां की जनता ने समय-समय पर कड़ा प्रतिरोध किया है। महारानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, कुंअर सिंह, मंगल पाण्डे तथा लखनऊ की बेगम हजरत महल ने 1857 की क्रान्ति में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये थे। लखनऊ, कानपुर, झांसी, बलिया, मेरठ, बरेली, अलीगढ़ आदि इस क्रान्ति के बड़े केन्द्र थे। लखनऊ की रेजीडेंसी तो मानो स्वाधीनता आन्दोलन का स्मारक है।
स्वतंत्रता आन्दोलन में जहां एक ओर शहीद भगत सिंह, शहीद चन्द्र शेखर आजाद, शहीद राम प्रसाद बिस्मिल, शहीद अशफाकउल्ला खां जैसे अनगिनत महान क्रान्तिकारियों ने इस भूमि को कर्मस्थली बनाया वहीं महापंडित राहुल सांकृत्यायन, पं. जवाहर लाल नेहरू, कामरेड पी. सी. जोशी, कामरेड अजय घोष, कामरेड आर. डी. भारद्वाज, आचार्य नरेन्द्र देव, श्री सज्जाद ज़हीर उर्फ बन्ने भाई, डा. रशीद जहां तथा कामरेड नागेन्द्र सकलानी आदि अनेक नेताओं की यह जन्म एवं कर्म भूमि रही है। कानपुर षडयंत्र केस, मेरठ षडयंत्र केस, काकोरी रेल कांड और बलिया को आजाद कराना जैसी उल्लेखनीय ऐतिहासिक घटनायें इस क्षेत्र का गौरव बढ़ाती हैं। यहां तक कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना भी 1925 में कानपुर नगर में हुई तो प्रगतिशील लेखक संघ और अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना भी 1936 में ही इसी लखनऊ शहर में हुई।
दुर्भाग्य की बात है कि गंगा जमुनी तहजीब की पोषक उत्तर प्रदेश की यह धरती आज साम्प्रदायिक एवं जातिवादी ताकतों की चरागाह बन गई है और इसके विकास का पहिया थम कर रह गया है। शोषित पीड़ित जनता और छात्र युवाओं के सवालों पर निरंतर संघर्ष के जरिये इस स्थिति को पलटा जा सकता है।
अपने स्थापना काल से स्वतंत्रता हासिल करने तक एआईएसएफ ने उपनिवेशवाद के खिलाफ जंगजू लड़ाई लड़ी और देश को आजाद कराने में महती भूमिका अदा की। आजादी के बाद से लेकर आज तक यह संगठन सभी को समान और निःशुल्क शिक्षा, रोजगारपरक शिक्षा, शिक्षा के कानूनी अधिकार और युवाओं और छात्रों के मध्य वैज्ञानिक सोच विकसित करने को आन्दोलनरत रहा है। बेरोजगारी की समस्या पर ध्यान केन्द्रित करते हुए इसने ‘काम दो या जेल दो’, बेरोजगारों को काम या भत्ता’ जैसे नारों पर जुझारू संघर्ष चलाकर जनमानस को झकझोरा है। शिक्षा का अधिकार और मनरेगा जैसे कानून इसी जद्दोजहद की देन हैं।
एआईएसएफ भारत के उदीयमान नागरिकों के निर्माण की कार्यशाला रहा है। अनेक राजनीतिविद, साहित्यकार, कलाकार, बुद्धिजीवी, अकादमीशियन, वैज्ञानिक, न्यायविद्, शिक्षाशास्त्री इस मंच पर प्रशिक्षण प्राप्त कर देश और समाज के विकास में अपनी भूमिका अदा करते रहे हैं। वामपंथी आन्दोलन के नेताओं और कार्यकर्ताओं की यह सबसे बड़ी नर्सरी है।
साथियो!
आज हर क्षेत्र में हम भूमंडलीकरण और कारपोरेटाइजेशन द्वारा पैदा की गयी समस्याओं से जूझ रहे हैं। नई व्यवस्था ने शिक्षा प्रणाली को भी चपेट में ले लिया है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र हावी हो रहा है और शिक्षा एक बड़ा व्यापार बन गयी है। अब विदेशी विश्वविद्यालयों को यहां आकर तिजारत जमाने की छूट दी जा रही है। अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने को आम आदमी कर्ज ले रहा है, जमीन-जायदाद बेच रहा है या फिर उसके बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हो रहे हैं। पैसे की भरमार ने शिक्षा क्षेत्र में बड़े भ्रष्टाचार को पैदा किया है। इससे शिक्षा और अंततः देश का भविष्य ही खतरे में है।
सवाल उठता है कि क्या यह सब मूकदर्शक बने रहने का वक्त है? कदापि नहीं! निश्चय ही हमें इस शिक्षा प्रणाली और कारपोरेटाइजेशन की व्यवस्था पर हल्ला बोलना होगा। ऐसे ही जैसे आजादी की लड़ाई में उपनिवेशवाद पर हल्ला बोला गया था। डा. भीमराव अम्बेडकर की सीख - ”शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो“ हमें अमल में उतारनी होगी। हमारे छात्रों को आज एआईएसएफ के बैनर तले संगठित होना होगा और शिक्षा हासिल करने के संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा। शिक्षित समाज ही देश के विकास की रीढ़ बनता है। ज्ञान की ताकत सबसे बड़ी ताकत है।
अपने 75वें वर्षगांठ समारोह में एआईएसएफ उपर्युक्त सभी सवालों पर गहन चिन्तन कर छात्र एवं नौजवान आन्दोलन को एक नई और सही दिशा देने में कामयाब होगा, ऐसी मुझे आशा है। एक सोद्देश्य शिक्षा प्रणाली विकसित कर सामाजिक परिवर्तन और समाजवाद की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करेगा, ऐसी मेरी अभिलाषा है। इस आशा और अभिलाषा को अमल और विश्वास में बदलने में हम सभी कामयाब हों, यह मेरी कामना है।
एक बार पुनः आप सभी का हार्दिक स्वागत एवं क्रान्तिकारी अभिनन्दन।
जय हिन्द!                जय समाजवाद!!
छात्रों एवं युवाओं की एकता - जिन्दाबाद!
क्रान्ति आवश्यक ही नहीं अवश्यंभावी है!
हम इसे लाकर रहेंगे!
धन्यवाद के साथ

(डा. गिरीश)
स्वागताध्यक्ष

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

प्रसिद्ध साहित्यकार एवं एआईएसएफ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष का. विद्या सागर नौटियाल का शुभकामना संदेश

साथियों,
आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन की षष्टिपूर्ति के अवसर पर लखनऊ में एकत्र आप सभी साथियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूं।
इस अवसर पर मुझे वे दिन याद आ रहे हैं जब मैं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का छात्र सन 1953-60 में था। बीएचयू के एसएफ की पुरानी व गौरवशाली परम्परायें थीं। मद्रास के तेलगू भाषी क्षेत्र के एक जमींदार के पुत्र सी. राजेश्वर राव का अपनी वंशानुगत परंपराओं के अनुसार उच्छृंखल जीवन था। बीएचयू से वातावरण में प्रगतिशील अध्यापकों के प्रभाव में आकर उनकी जीवन-पद्धति परिवर्तित हो गई। उन्होंने मार्क्सवाद का गहन अध्ययन किया और शोषक वर्ग के कट्टर विरोधी बन गये। वे बीएचयू एसएफ में काम करने लगे। बाद में घर लौटने पर वे जालिम जमींदारों पर सशस्त्र क्रान्ति के जन्मदाता बन गये। अपनी जमींदारी की कुल भूमि उन्होंने रैय्यत को बांट दी और एक छोटे से हिस्से पर प्रजाशक्तिनगर में छोटे-छोटे प्लाट पार्टी कार्यकर्ताओं को दे दिए, जिन पर आज का प्रजाशक्तिनगर बसा है।
हमारे युग में एसएफ आम छात्रों के बीच एक शक्तिशाली संगठन बन गया था। उसने वहां के गरीब छात्रों को निकाल बाहर करने के केन्दीय सरकार के निर्णयों के खिलाफ ऐतिहासिक लड़ाईयां लड़ीं। उसी दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ओम प्रकाश मेहरोत्रा अध्यक्ष बनें। आसिफ अंसारी, हरगोविंद डबराल, हरीश गैरोला प्रमुख नेता थे। लखनऊ विश्वविद्यालय में कांग्रेसी सरकार की छात्र विरोधी नीतियों का विरोध करने के कारण मेडिकल कालेज के डा. गैन्डर को गोलियां से भून दिया गया था। उसके बाद लोकप्रिय छात्र नेता रोबिन मित्रा का अध्यक्ष चुना गया। विशेश्वर प्रसाद खंडूड़ी महामंत्री बने। लखनऊ में हैदर अब्बास और अब्दुल मन्नान विशुद्ध हिन्दी में ओजस्वी भाषण देने के कारण छात्रों के बीच अत्यंत प्रभावशाली बन गये और अतिया बनो एसएफ की प्रमुख नेता थीं।
उधर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भारत के प्रमुख छात्र-वक्ता सुल्तान नियाज़ी ने नेतृत्व ग्रहण किया। उनके दोनों भाई इकबाल नियाज़ी और आफताब नियाज़ी भी तूफानी छात्र नेता बन गए। गौरव होता है कि उस दौरान आज के प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब एसएफ के नेता थे।
कलकत्ता में डा. विधान चन्द्र राय के जुल्मों का विरोध करते हुए समस्त छात्र एसएफ से जुड़ गये थे। छोटे-छोटे शहरों के अन्दर भी जो भी आम चुनाव हो पाते उनमें एकएफ के ही प्रत्याशी विजयी होते थे। उस दौरान एआईएसएफ का मुख्यालय भी कलकत्ता में ही था और वहीं से पूरे देश के छात्रों को नेतृत्व मिलता था। आन्ध्र प्रदेश के बन जाने के बाद पूरे आन्ध्र प्रदेश में एस.एफ. का बोलबाला स्थापित हो गया था और दिल्ली विश्वविद्यालय में एसएफ प्रत्याशी हरीश चन्द्र अध्यक्ष बन गये थे।
यू.पी. के देहरादून जैसे सुदूर व उपेक्षित नगर में यूनियन के निर्वाचन में गोविन्द सिंह नेेगी भी प्रमुख नेता बन कर उभरे। यू.पी. के छोटे-छोटे नगरों में भी जैसे कानपुर व बरेली में एसएफ के साथियों ने अपने झंड़े गाड़ दिये थे। इसमें गोरखपुर आदि अनेक शहरों का जिक्र नहीं कर पाया हूं जल्दबाजी के कारण।
उस पूरे दौरान अखिल भारतीय स्तर पर आम छात्रों का नेतृत्व देने वाला कोई भी अन्य विद्यार्थी संगठन नहीं था। मैं महज़ कुछ घटनाओं का जिक्र कर रहा हूं। आप सबको इस बात को याद दिलाने के लिए कि एसएफ की गौरवशाली परम्पराओं को आगे बढ़ाते रहने के लिए आज की परिस्थितियों के अनुसार आप सभी साथियों के कंधों पर जुम्मेदारी आई है।
इस समय मेरा मन आप सबके बीच उपस्थित होने को तड़प रहा है। यह सन्देश मजबूरी में लिखा जा रहा है।
आपका साथी
विद्या सागर नौटियाल
पूर्व अध्यक्ष, एआईएसएफ
1957-1960

आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन के प्लेटिनम जुबली समारोह का कल 12 अगस्त को लखनऊ में शुभारम्भ

लखनऊ 11 अगस्त। आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) के प्लेटिनम जुबली (75वें स्थापना दिवस) समारोह के अवसर पर कल 12 अगस्त को देश के विभिन्न राज्यों से लगभग 500 छात्र नेता तथा एआईएसएफ का विभिन्न अवधियों में नेतृत्व कर चुके और अब समाज के विभिन्न क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहे 200 पूर्व छात्र नेता ऐतिहासिक गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल, अमीनाबाद में एकत्र होंगे।
प्लेटिनम जुबली समारोह के स्वागताध्यक्ष तथा भाकपा के प्रदेश सचिव डा. गिरीश ने उक्त जानकारी देते हुए कहा कि अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरूद्ध संघर्षों की ज्वाला से 12 अगस्त 1936 को लखनऊ के ऐतिहासिक गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल, अमीनाबाद में आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन का जन्म हुआ था। पं. जवाहर लाल नेहरू ने इस स्थापना सम्मेलन की अध्यक्षता की थी और मोहम्मद अली जिन्ना सम्मेलन में मुख्य अतिथि थे। महात्मा गांधी, रवीन्द्र नाथ टैगोर के शुभकामना संदेश आये थे। लखनऊ ही उस समय के जुझारू छात्र नेता स्वर्गीय प्रेम नारायण भार्गव प्रथम महासचिव निर्वाचित हुए थे।
एआईएसएफ ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को गति दी बल्कि भारतीय छात्र आन्दोलन को व्यापक रूप से संगठित कर स्वाधीनता संग्राम के साथ जोड़ने में ऐतिहासिक भूमिका अदा की। कल उसी ऐतिहासिक गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल, अमीनाबाद में देश के विभिन्न क्षेत्रों के 700 सौ वर्तमान एवं पूर्व छात्र नेता जमा होकर शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्रों की चुनौतियों और छात्रों के जनवादी अधिकारों के हनन पर एक बार पुनः राष्ट्रीय स्तर पर जुझारू छात्र आन्दोलन खड़ा करने का संकल्प लेंगे। प्लेटिनम जुबली समारोह का उद्घाटन 12 अगस्त को पूर्वान्ह 11 बजे एआईएसएफ के पूर्व नेता न्यायमूर्ति हैदर अब्बास रज़ा करेंगे। इस अवसर पर लगाई जा रही फोटो प्रदर्शनी का उद्घाटन भाकपा के उप महासतिचव एस. सुधाकर रेड्डी प्रातः 10.30 बजे करेंगे।