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शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन के प्लेटिनम जुबली (75वीं वर्षगांठ) समारोह (12-13 अगस्त 2011 - गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल, लखनऊ) में स्वागत समिति के अध्यक्ष डा. गिरीश का स्वागत भाषण

अध्यक्षमंडल के साथीगण, जिनके प्रेरणाप्रद उद्गारों से एआईएसएफ के प्लेटिनम जुबली समारोह का उद्घाटन होने जा रहा है और अपने विद्यार्थी जीवन में एआईएसएफ के जुझारू नेता रहे न्यायमूर्ति हैदर अब्बास रज़ा साहब, राष्ट्रीय स्तर पर और आंध्र प्रदेश में इस संगठन की विभिन्न जिम्मेदारियों का निर्वाह कर चुके और वर्तमान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उप महासचिव का. एस. सुधाकर रेड्डी, एआईएसएफ के पूर्व अध्यक्ष और भाकपा के सचिव मंडल के सदस्य का. अतुल कुमार अंजान, एआईएसएफ की पूर्व महासचिव और भाकपा के केन्द्रीय सचिव मंडल की सदस्या का. अमरजीत कौर, एआईएसएफ के अध्यक्ष परमजीत ढाबां एवं महासचिव अभय मनोहर टकसाल, समारोह में पधारे विशिष्ट अतिथिगण, सम्मानित पूर्व नेतागण, देश भर से आये छात्र प्रतिनिधिगण, स्वागत समिति के पदाधिकारी एवं सदस्यगण, समस्त सहयोगी साथी एवं वालंटियर साथियो!
एआईएसएफ की उत्तर प्रदेश इकाई एवं उसके सहयोगी संगठनों का परम सौभाग्य है कि उन्हें देश के सर्वप्रथम गठित छात्र संगठन के गौरवशाली 75 वर्षों की उपलब्धियों पर केन्द्रित इस जश्न की मेजबानी करने का सुअवसर मिला है। उत्तर प्रदेश और लखनऊ के सभी साथियों और नागरिकों का सिर इसलिये भी गर्व से उन्नत है कि आजादी के आन्दोलन में अतिविशिष्ट भूमिका निभाने वाले इस महान संगठन के स्थापना समारोह को आयोजित करने की पहल यहां के तत्कालीन छात्र नेताओं ने की। 12 एवं 13 अगस्त 1936 को इसी ऐतिहासिक श्री गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में बेहद गर्मजोशी के माहौल में एआईएसएफ की स्थापना हुई थी। इस घटना के महत्व को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि स्वतंत्रता संग्राम के तत्कालीन शीर्षस्थ नेता पं. जवाहर लाल नेहरू ने स्थापना सम्मेलन का उद्घाटन किया था और एक अन्य बड़े नेता मुहम्मद अली जिन्ना समारोह के मुख्य अतिथि थे। महात्मा गांधी एवं कविवर रवीन्द्र नाथ टैगोर ने सम्मेलन के महत्व को देखते हुये अपने शुभकामना सन्देश भेजे थे। स्वतंत्रता संग्राम में जुटे उस दौर के तमाम छात्र एवं युवा नेताओं ने सम्मेलन में शिरकत की थी। लखनऊ के एक जुझारू छात्र नेता श्री प्रेम नारायण भार्गव इसके प्रथम महासचिव चुने गये, यह भी उत्तर प्रदेश और लखनऊ के लिए बेहद गौरव की बात है।
मित्रो!
उत्तर प्रदेश की यह भूमि हर तरह से उर्वरा रही है। पर्वतराज हिमायल से निकली लगभग दो दर्जन नदियों द्वारा निर्मित यहां की शस्य-श्यामला भूमि भांति-भांति के फल, सब्जी, अनाज आदि के उत्पादन का स्रोत है। विदेशी आक्रान्ताओं खासकर ब्रिटिश उपनिवेशवादियों का यहां की जनता ने समय-समय पर कड़ा प्रतिरोध किया है। महारानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, कुंअर सिंह, मंगल पाण्डे तथा लखनऊ की बेगम हजरत महल ने 1857 की क्रान्ति में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये थे। लखनऊ, कानपुर, झांसी, बलिया, मेरठ, बरेली, अलीगढ़ आदि इस क्रान्ति के बड़े केन्द्र थे। लखनऊ की रेजीडेंसी तो मानो स्वाधीनता आन्दोलन का स्मारक है।
स्वतंत्रता आन्दोलन में जहां एक ओर शहीद भगत सिंह, शहीद चन्द्र शेखर आजाद, शहीद राम प्रसाद बिस्मिल, शहीद अशफाकउल्ला खां जैसे अनगिनत महान क्रान्तिकारियों ने इस भूमि को कर्मस्थली बनाया वहीं महापंडित राहुल सांकृत्यायन, पं. जवाहर लाल नेहरू, कामरेड पी. सी. जोशी, कामरेड अजय घोष, कामरेड आर. डी. भारद्वाज, आचार्य नरेन्द्र देव, श्री सज्जाद ज़हीर उर्फ बन्ने भाई, डा. रशीद जहां तथा कामरेड नागेन्द्र सकलानी आदि अनेक नेताओं की यह जन्म एवं कर्म भूमि रही है। कानपुर षडयंत्र केस, मेरठ षडयंत्र केस, काकोरी रेल कांड और बलिया को आजाद कराना जैसी उल्लेखनीय ऐतिहासिक घटनायें इस क्षेत्र का गौरव बढ़ाती हैं। यहां तक कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना भी 1925 में कानपुर नगर में हुई तो प्रगतिशील लेखक संघ और अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना भी 1936 में ही इसी लखनऊ शहर में हुई।
दुर्भाग्य की बात है कि गंगा जमुनी तहजीब की पोषक उत्तर प्रदेश की यह धरती आज साम्प्रदायिक एवं जातिवादी ताकतों की चरागाह बन गई है और इसके विकास का पहिया थम कर रह गया है। शोषित पीड़ित जनता और छात्र युवाओं के सवालों पर निरंतर संघर्ष के जरिये इस स्थिति को पलटा जा सकता है।
अपने स्थापना काल से स्वतंत्रता हासिल करने तक एआईएसएफ ने उपनिवेशवाद के खिलाफ जंगजू लड़ाई लड़ी और देश को आजाद कराने में महती भूमिका अदा की। आजादी के बाद से लेकर आज तक यह संगठन सभी को समान और निःशुल्क शिक्षा, रोजगारपरक शिक्षा, शिक्षा के कानूनी अधिकार और युवाओं और छात्रों के मध्य वैज्ञानिक सोच विकसित करने को आन्दोलनरत रहा है। बेरोजगारी की समस्या पर ध्यान केन्द्रित करते हुए इसने ‘काम दो या जेल दो’, बेरोजगारों को काम या भत्ता’ जैसे नारों पर जुझारू संघर्ष चलाकर जनमानस को झकझोरा है। शिक्षा का अधिकार और मनरेगा जैसे कानून इसी जद्दोजहद की देन हैं।
एआईएसएफ भारत के उदीयमान नागरिकों के निर्माण की कार्यशाला रहा है। अनेक राजनीतिविद, साहित्यकार, कलाकार, बुद्धिजीवी, अकादमीशियन, वैज्ञानिक, न्यायविद्, शिक्षाशास्त्री इस मंच पर प्रशिक्षण प्राप्त कर देश और समाज के विकास में अपनी भूमिका अदा करते रहे हैं। वामपंथी आन्दोलन के नेताओं और कार्यकर्ताओं की यह सबसे बड़ी नर्सरी है।
साथियो!
आज हर क्षेत्र में हम भूमंडलीकरण और कारपोरेटाइजेशन द्वारा पैदा की गयी समस्याओं से जूझ रहे हैं। नई व्यवस्था ने शिक्षा प्रणाली को भी चपेट में ले लिया है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र हावी हो रहा है और शिक्षा एक बड़ा व्यापार बन गयी है। अब विदेशी विश्वविद्यालयों को यहां आकर तिजारत जमाने की छूट दी जा रही है। अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने को आम आदमी कर्ज ले रहा है, जमीन-जायदाद बेच रहा है या फिर उसके बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हो रहे हैं। पैसे की भरमार ने शिक्षा क्षेत्र में बड़े भ्रष्टाचार को पैदा किया है। इससे शिक्षा और अंततः देश का भविष्य ही खतरे में है।
सवाल उठता है कि क्या यह सब मूकदर्शक बने रहने का वक्त है? कदापि नहीं! निश्चय ही हमें इस शिक्षा प्रणाली और कारपोरेटाइजेशन की व्यवस्था पर हल्ला बोलना होगा। ऐसे ही जैसे आजादी की लड़ाई में उपनिवेशवाद पर हल्ला बोला गया था। डा. भीमराव अम्बेडकर की सीख - ”शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो“ हमें अमल में उतारनी होगी। हमारे छात्रों को आज एआईएसएफ के बैनर तले संगठित होना होगा और शिक्षा हासिल करने के संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा। शिक्षित समाज ही देश के विकास की रीढ़ बनता है। ज्ञान की ताकत सबसे बड़ी ताकत है।
अपने 75वें वर्षगांठ समारोह में एआईएसएफ उपर्युक्त सभी सवालों पर गहन चिन्तन कर छात्र एवं नौजवान आन्दोलन को एक नई और सही दिशा देने में कामयाब होगा, ऐसी मुझे आशा है। एक सोद्देश्य शिक्षा प्रणाली विकसित कर सामाजिक परिवर्तन और समाजवाद की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करेगा, ऐसी मेरी अभिलाषा है। इस आशा और अभिलाषा को अमल और विश्वास में बदलने में हम सभी कामयाब हों, यह मेरी कामना है।
एक बार पुनः आप सभी का हार्दिक स्वागत एवं क्रान्तिकारी अभिनन्दन।
जय हिन्द!                जय समाजवाद!!
छात्रों एवं युवाओं की एकता - जिन्दाबाद!
क्रान्ति आवश्यक ही नहीं अवश्यंभावी है!
हम इसे लाकर रहेंगे!
धन्यवाद के साथ

(डा. गिरीश)
स्वागताध्यक्ष

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